नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-31

हिमगिरी पर्वत अपने आप में विशेष महत्व रखता है। यहां साधना का अवसर  विरले ही किसी को प्राप्त होता है, क्योंकि यहां की तपस्थली तक पहुंच पाना कुछ आसान काम नहीं। उस स्थान पर पहुंचने वाले साधक को बर्फ से भी ज्यादा इस शीतलता का अनुभव करना होता है, जो एक साधारण शरीर के लिए संभव है।

यहां की वरदानी शक्तियां और पूर्व की साधना का फल यदि संचित रूप से साधक के पास ना हो, तो वो इस पर्वत की तलछटी को ही पार नहीं कर पाता। तब तपस्थली तक पहुंचाना और ही बात है।

इस स्थान पर कई ऐसे ऋषि मुनि ना जाने कितने ही हजारों वर्षों से समय काल की सीमा से परे निरंतर तप कर रहे हैं। स्वयं यमराज ही क्या त्रिदेव भी इन ऋषि मुनियों की शक्ति का आंकलन करने का प्रयास नहीं करते। क्योंकि इन्होंने नाम मात्र के लिए ही जीव की काया धारण की होती है।

वास्तव में यह वे अभिभूत शक्तियां है, जो जन्म मृत्यु के चक्र से परे हैं। जो जन्म-जन्म से निरंतर तपस्या में लिन रहते हैं, और अपनी इच्छानुसार वे जब चाहे तब अपने पुराने शरीर को उस बर्फ की तलछटी में पानी की तरह गला कर त्याग देते हैं। और फिर संसार के किसी और कोने में किसी भाग्यशाली के घर जन्म ले कुछ समय तक माया के साथ खेल पुनः उसे त्याग हिमगिरी पर्वत पर आ अपने ही उस स्थान पर पुनः अपनी साधना को निरंतर करते रहते हैं।

ऐसे महान ऋषियों की तपस्या के कारण उस तपस्थली का आभा मंडल स्वयं इतना चमत्कारिक हो गया था, कि वह रात्रि के समय किसी तेज रोशनी की तरह नजर आता है। और ऐसे स्थान पर तपस्या का शुभ अवसर किसी अदृश्य शक्ति द्वार आदेशित हो गुरुदेव ने लक्षणा को प्रदान किया था। इसलिए लक्षणा तड़के सुबह हिमगिरी पर्वत की और निकल पड़ी।

लक्षणा बड़ी वेग से उस प्रातः पूजन में शामिल होने जा रही थी। जो यक्ष, गंधर्व और नागों के साथ देवताओं द्वारा उस तपस्थली के लिए की जाती है। बिना तपस्थली के पूजन में शामिल हुए वहां तपस्या की अनुमति शायद ही मिल पाती। यही उस स्थान का नियम था, इसलिए प्रातः काल को पाने का आदेश गुरुदेव के द्वारा प्रदान किया गया था।

लेकिन लक्षणा जैसे ही उस पहाड़ की तलछटी पर पहुंची। उसे एक कुत्ता अधमरी हालत में कहारते हुए नजर आया। शायद किसी हिमखंड मे दबकर वह सिर्फ आधा ही नजर आ रहा था। जिसे देख लक्षणा एक दम से रुक गई, और लक्षणा को रुका हुआ देख वह कुत्ता भी उम्मीद की किरण लिए हुए लक्षणा को निहारने लगा।

लक्षणा ने आगे बड, बड़ी ही मसककत से कदंभ की सहायता ले उस कुत्ते को बाहर निकाला। लेकिन वह कुत्ता चल पाने में पूर्ण रुप से असमर्थ था। जिसका प्रमुख कारण बहुत देर तक बर्फ की ठंडक में दबे रहने के कारण, शायद पैर की नसों का शून्य होना था।

लक्षणा और कदंभ दोनों ही जानते थे, कि हिमगिरी पर्वत पर किसी भी शक्ति का उपयोग करने की मनाही है। यदि कोई भी ऐसा करता है, तो वह इस समय अपनी शक्तियों से हाथ धो बैठेगा। क्योंकि एक विशाल शक्तिपुंज के सामने अपनी शक्ति का उपयोग करना उसकी अवमानना करने के बराबर है। इसलिए वे चाहकर भी सिर्फ अपने प्रयास ही जारी रख सकते थे।

लेकिन इतने कम समय में साधन जुटा पाना और उसे ठीक कर पाना, वह भी बिना शक्ति प्रयोग के लगभग असंभव सा था। और उस कुत्ते को ऐसी हालत में छोड़ देना भी संभव नहीं होगा। क्योंकि ऐसी दशा में उसे छोड़कर चले जाते तो, ठंड के मारे वह अपने प्राण भी त्याग सकता था। इसलिए लक्षणा और कदंभ दोनों ने उसे वहां से उठाकर किसी सुखी जगह पर ले जाना उचित समझा।

तभी उन दोनों को सामने एक गुफा नजर आई। जहां ले जाकर उन्होंने उस कुत्ते को उस ठंडे माहौल से अलग किया, और धीरे-धीरे उसके पैरों की मसाज कर उसे थपथपाते हुए गर्म करने का प्रयास किया। थोड़े ही समय में सूर्य की किरणें उस पर्वत पर पड़ने लगी। जिससे थोड़ी गर्मी प्राप्त की जा सकती थी।

तब लक्षणा ने उस कुत्ते को अपनी गोद में उठाकर, सूर्य की गर्मी दिखाई, और देखते ही देखते वह कुत्ता थोड़ा स्वस्थ नजर आने लगा। लेकिन इन सबके बीच लक्षणा उस अवसर को खो बैठी, जिससे वहां उस वक्त उस तपस्थली में प्रवेश पा सकती थी। उस समय लक्षणा और कदंभ दोनों  ने उस कुत्ते की जान बचाना ज्यादा उचित समझा, क्योंकि उस कुत्ते की हालत देखकर दोनों का मन विचलित और दुखी हो गया था। वे उसे इस हालत में छोड़कर अपने लक्ष्य की और बढ़ना नहीं चाहते थे।

जब एक प्राणी उनके सामने इस अवस्था में है, तो फिर कैसे उनका मन आगे जानें के लिए होता और वह आगे की और अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु बढ़ते, तब भी लक्षणा और कदंभ दोनों का मन उस कुत्ते के बारे में सोचता। उस कुत्ते के पैर में काफी घाव भी आ चुका था। तभी लक्षणा ने एक पेड़ से जड़ी बूटी को लाकर कुत्ते के पैर को लगा और वही थोड़ी दूर एक पेड़ से कुछ फल और पानी का इंतजाम करके उस कुत्ते को खिलाया पिलाया।

कुछ देर में वह कुत्ता अपनी सामान्य स्थिति में आ गया। उसे देख लक्षणा और कदंभ दोनों को इस बात की संतुष्टि हुई, कि आखिर यह कुत्ता पूरी तरीके से स्वस्थ हो गया। तभी लक्षणा, कदंभ से कहने लगी कि, कदंभ हमें गुरुवर ने अपने तपस्थली के लिए प्रातः काल का समय दिया था। और हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ नहीं पाए। लेकिन मन में बहुत प्रसन्नता भी हो रही है, कि हमने इस कुत्ते की जान समय रहकर बचा ली।

हां लक्षणा हम इस बारे में गुरुवर से बात जरूर करेंगे, और वह कोई ना कोई उपाय पिछली बार की तरह जरूर निकाल लेंगे।क्योंकि हमारे सामने जब कोई प्राणी या मनुष्य की ऐसी हालत हो तो हमारा पहला कर्तव्य है, कि हम उनके प्राणों की रक्षा करें। उसके बाद ही हम अपने लक्ष्य की ओर बड़े, कहते हुए कदंभ, लक्षणा की और देखना लगा। अब प्रातः पूजन का समय प्राप्त हो चुका था। लेकिन उन दोनों अंतर्मन प्रसन्न था, कि उन्होंने एक कुत्ते की जान बचाई। लेकिन इस बात का दुख भी था कि वह अपना मूल लक्ष्य प्राप्त न कर सके।

क्रमशः

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